भगवान विष्णु का वैकुंठ धाम कहा है ?

भगवान विष्णु का वैकुंठ धाम कहा है ?

Pic of vaikunth
Vikunth lok

कभी न कभी आप सभी के मन में वैकुंठ धाम के बारे में विचार आया ही होगा और यह प्रश्न भी जरूर आया होगा कि आखिर वैकुंठ धाम हमारे अंतरिक्ष में कौन सी जगह पर स्थित है ? और साथ ही ब्रह्मा जी का सत्यलोक, इन्द्रदेव का इन्द्रलोक किस स्थान पर है ? आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार इन सभी देव स्थानों के बारे में विस्तार में बताएंगे।

Advertise : show me

ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई थीं ?

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्रह्म देव के जन्म के साथ होती है और जब ब्रह्म देव की आयु की समाप्ति होती है तों इस ब्रह्मांड का विनाश होता है और हर तरफ केवल अंधकार ही बच जाता है लेकिनन इतने बड़े इस ब्रंह्माड में ब्रह्म देव आखिर किस स्थान पर है ? भगवान विष्णु जी का वैकुंठ किस स्थान पर स्थित है ?

ब्रह्माजी और विष्णु भगवान किस स्थान पर रहते हैं ?

ब्रह्माजी जिस स्थान पर रहते है उसे सत्यलोक कहते हैं, और भगवान विष्णु जिस स्थान पर रहते है उसे वैकुंठ कहा जाता है। विष्णु पुराण में इन सभी स्थानों का वर्णन मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार वैकुंठ एक ऐसी जगह है जहां पर लाखों सुर्य आकाश में तेजवान है और वहां पर कई सारे ग्रह भी स्थित है। भागवत पुराण के अनुसार वैकुंठ  स्थान ध्रुव तारे की और है, ध्रुव तारे को वैज्ञानिक भाषा में “पोल स्टार” कहा जाता है। यानी कि अगर अंतरिक्ष में हम इसे ढूंढ़े तो यह स्थान है “उर्षा माईनर कोन्सटेलेशन” जिसे नक्षत्र कहा जाता है। इस नक्षत्र में सुर्य से भी लाखों गुना तेजवान सितारे स्थित है, यह नक्षत्र उत्तर की ओर स्थित है।

ध्रुव तारे की पृथ्वी से दूरी।

ध्रुव तारे की पृथ्वी से दूरी है 433 प्रकाशवर्ष, अगर हम इसे किलोमीटर के हिसाब से देखें तो यह होता है चार पद्म दस नील चालीस खर्व किलोमीटर, यानी कि( Four Quadrillion One hundred Four Trillion) मतलब 4 के आगे 15 शून्य लगाओ इतना अंतर होता है, यह तो पृथ्वी से ध्रुवलोक का अंतर हुआं।

महारलोक

ध्रुवलोक के उपर एक करोड़ योजन, यानी कि 12 करोड़ 29 लाख 53 हजार 881 किलोमीटर के बाद आध्यात्मिक जगत में स्थित है महारलोक के ग्रह, यह महारलोक स्वर्गलोक का एक भाग है। जहां पर ब्रंह्माड की सत्कर्म करने वाली आत्माएं वास करती है। पुराणों के अनुसार जो लोग सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करते हैं तथा किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करते, वे लोग मृत्यु के पश्चात  इन ग्रहों पर जाते हैं।  इन ग्रहों पर जीवन रमणीय होता है, मन को शांति देने वाला प्रकृति का नजारा होता है। यहां पर जाने वाले जीव स्वयं को पुण्यवान समझते हैं।  यहां पर रहने वाले जीव तृप्त रहते हैं और कभी दुखी नहीं होते।

जनलोक

अब दुसरा लोक है जनलोक, महारलोक के उपर 2 करोड़ योजन, यानी कि 24 करोड़ किलोमीटर के पश्चात् आता है जनलोक। जनलोक के ग्रहों पर जातें हैं पुण्य करने वाले लोग जो स्वयं के स्वार्थ का त्याग कर, हमेशा दुसरो की मदद करते हैं, वहीं लोग जनलोक के ग्रहों पर जातें हैं। यह स्थान बड़ा ही तेजस्वी होता है। यहां पर जाने वाले मनुष्य स्वयं देवताओं का दर्शन कर सकते हैं। स्वर्ग के देवताओं को देखने का भाग्य इन ग्रहों पर जाने वाले लोगों को मिलता है।

तपोलोक


इसके बाद आता है तपोलोक, जनलोक के बाद 8 करोड़ योजन यानी कि 98 करोड़ किलोमीटर के बाद स्थित है। इस स्थान पर जाने के लिए बहुत ही कठीन परीक्षा देनी पड़ती है। यहां पर केवल साधु, ऋषि – मुनि और संन्यासी हीं जा सकतें हैं। जो जीवन के सभी सुखों का त्याग कर केवल ईश्वर की आराधना और सत्कर्म करते हैं, वहीं लोग इस स्थान पर जाने के योग्य होते हैं तथा स्वर्गलोक का उच्च स्थान माना जाता है। यहां पर जाने वाले लोग स्वयं स्वर्ग के देवताओं से मिल सकतें हैं। यहां पर ब्रंह्माड की अनेक ऊर्जाओं को नियंत्रित करने वाले देवी-देवता रहते हैं। जैसे कि वरूणदेव, अग्निदेव इत्यादि।

सत्यलोक

तपोलोक के पश्चात आता है सत्यलोक, तपोलोक के उपर 12 करोड़ योजन, यानी की 1 अरब 47 करोड़ 54 लाख 46 हजार 579 किलोमीटर के अंतर पर स्थित है सत्यलोक। जहां पर स्वयं ब्रह्माजी बिराजमान है। यहां पर जाना किसी भी मनुष्य के लिएं संभव नहीं हैं। केवल महान आत्माएं हीं इस स्थान पर जा सकती है। जिन्होंने जन्म – जन्मांतरों में अनेक पुण्य किए हों। महारालोक, जनलोक और तपोलोक मैं रहकर भी जो लोग अंतिम सत्य ईश्वर को पाने की चाह रखते हैं, केवल उन्हें ही सत्यलोक मैं जानें का सौभाग्य प्राप्त होता हैं।

वैकुंठ लोक


और फिर सत्यलोक के उपर 2 करोड़, 62 लाख योजन यानी कि 32 करोड़, 21 लाख, 39 हजार, 169 किलोमीटर के अंतर पर स्थित है वैकुंठलोक। जहां पर स्वयं भगवान विष्णु शेषनाग पर विराजमान रहते हैं। यह किसी भी आत्मा का अंतिम स्थान होता हैं, सारे ब्रह्माण्ड की आत्मा यहीं पर केंद्रित होती है। इस स्थान पर जाने वाली आत्माएं मोक्ष की प्राप्ति करतीं हैं। इसे हीं अंतिम सत्य कहा जाता है, और इसे ही ब्रंह्माड का अंत भी कहा जाता है। यहां पर जाने के बाद आत्मा जन्म-मृत्यु के इस चक्र से मुक्त होती है। लेकिन यह ध्यान में रहें हम फिजिकल वर्ल्ड की बात नहीं कर रहे।यह सभी आंकड़े आध्यात्मिक जगत को दर्शातें हैं।

पृथ्वी से वैकुंठ तक की दूरी आध्यात्मिक तरीके से।


अगर हम धरती से वैकुंठ की दूरी का अनुमान लगाएं तो यह होता है

4 पद्म, 10 नील, 40 खर्व
+ 12 करोड़, 29 लाख, 881 किलोमीटर
+ 24 करोड़, 59 लाख, 7 हजार, 763 किलोमीटर
+ 98 करोड़, 36 लाख, 31 हजार, 52 किलोमीटर
+ 1 अरब, 47 करोड़, 54 लाख, 46 हजार, 579 किलोमीटर
+ 32 करोड़, 21 लाख, 39 हज़ार, 179 किलोमीटर

इन सब का मिलाकर होता है = 4 पद्म, 10 नील, 40 खर्व, 3 अरब, 15 करोड़,  78 हजार, 444 किलोमीटर।

यानी कि आप देख सकते हैं कि कितना दूर है वैकुंठ हमारी पृथ्वी से।

क्या मोजूदा टेक्नोलॉजी से वैकुंठ तक पहुंचा जा सकता है ?


अगर हम आज की मोजूदा टेक्नोलॉजी से वैकुंठ पर जाने का प्रयास करेंगें तो हमें कितना समय लगेगा इस के बारे में जानते हैं। आज की टेक्नोलॉजी के आधार पर हम 39 हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से हम अंतरिक्ष में प्रवास कर सकते हैं, अगर इस गति से हम वैकुंठ पर जाएंगे तो हमे 10 अरब, 52 करोड़, 30 लाख, 85 हज़ार घंटे लग सकते हैं, मतलब 12 लाख से भी ज्यादा साल लग सकते हैं। तो इसी बात से पता चलता है कि इस टेक्नोलॉजी सी आज के समय में हम कभी वैकुंठ नहीं पहुंच सकते।

तो यह था धरती से वैकुंठ तक का सफर। टेक्नोलॉजी के 
आधार से तो हम कभी वैकुंठ तक पहुंच नहीं सकते, लेकिन आध्यात्मिक मार्ग से हम वहां पर क्षण भर में पहूंच सकते हैं। इसी लिएं सदैव अच्छे कर्म करो स्वयं भगवान ही आपको उस स्थान पर ले जाएंगे। हम आशा करते हैं कि आप सभी को हमारी यह पोस्ट जरूर पसंद आई होगी धन्यवाद।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हठयोग किसे कहते है ?

महादेव किसका ध्यान करते हैं ?