कर्म क्या है ?

कर्म क्या है ?

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Image of Buddha(from internet)

एक बार गौतम बुद्ध से उनके एक शिष्य ने पूछा कि गुरु जी कृपया कर हमें बताइए कि “कर्म क्या है ?” तब उस प्रश्न के उत्तर में गौतम बुद्ध ने कहा कि कर्म को समझने के लिए में तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। इस कहानी से तुम समझ जाओगे की कर्म क्या है ?

आज हम उसी कहानी के बारे में बताएंगे जो कि गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को सुनाई थी।

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गौतमबुद्ध अपने शिष्यों को कहानी सुनाते हैं।

Gautam Buddh
Buddha and Shishya(from internet)

गौबुद्ध अपने शिष्यों को कहानी सुनाते हैं की बुलंद शहर का एक राजा था और वो घोड़े पर बैठकर एक दिन अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था। चारों तरफ भ्रमण करने के बाद वह एक दुकान के सामने आकर रुक गया, रुकने के बाद राजा ने अपने मंत्रि से कहा कि मंत्रीजी मालूम नहीं पर मुझे लगता है की इस दुकानदार को कल के कल फांसी की सज़ा सुना दूं, इसे मृत्यु दंड देने की मुझे इच्छा हो रही है। मंत्री राजा से इसका कारण पूछ पाते इस से पहले तो राजा उनके आगे निकल गए।

मंत्रीजी इसका कारण पता करने के लिए अगली सुबह भेष बदलकर आम जनता का रुप लेकर दुकानदार के पास जा पहुंचे। वैसे दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचने का काम करता था। मंत्रीजी ने दुकानदार से पूछा कि भाई आपका काम कैसा चल रहा है ?, तब दुकानदार ने बताया कि उसका बहुत ही बुरा हाल है, लोग उसकी दुकान पर तो आते हैं चंदन को सूंघ कर उस की प्रशंसा बहुत ज़्यादा करते हैं, लेकिन खरीदता कोई भी नहीं। और उसने आगे बताया कि मैं सिर्फ इसी इंतजार में हूं कि कब हमारे राज्य के राजा की मृत्यु हो जाए और उनके अंतिम संस्कार के लिए मुझसे बहुत सारी चंदन की लकड़ीया खरीद ली जाएं और सायद मेरा व्यापार में वहां से और बढ़ोतरी हो जाएंगी और मेरा व्यापार भी अच्छा हो जाएगा। मंत्रीजी को सारी बात समझ आ गई की यही वो नकारात्मक विचार है कि जिसने राजा के मन को भी नकारात्मक कर दिया है।

वह मंत्री बहुत ही बुद्धि मान थे। इसी लिए उन्होंने सोचा कि मैं थोड़ी बहुत चंदन की लकड़ीया खरीद लेता हूं। उन्होंने दुकानदार से कहा कि क्या मैं आपसे थोड़ी बहुत चंदन की लकड़ीया खरीद सकता हूं ?, दुकानदार यह सुनकर बहुत ही खुश हो गए, उन्होंने सोचा कि चलो कुछ तो बिका। इतने समय से कुछ भी नहीं बिक रहा था। उसने चंदन की लकड़ी को कागज़ से लपेटा और अच्छी तरह से पेक करके मंत्रीजी को दें दीं।

मंत्रीजी अगली सुबह चंदन की लकड़ी लेकर राजा के दरबार में पहुंच गए और राजा से कहा कि वो जो दुकानदार है उसने तौफे के रूप में चंदन की कुछ लकड़ियां भेजी है। यह सुनते ही राजा बहुत ही खुश हुए और मन ही मन सोचने लगें की मैं बेकार में ही उस दुकानदार के बारे में गलत बातें सोच रहा था, उन्होंने चंदन की लकड़ी को हाथ में लिया और बहुत ही अच्छी तरीके से उसे सूंघा, उस में से बहुत ही अच्छी सुगंध आ रही थी। राजा इस से बहुत ही खुश हुए और राजा ने मंत्रीजी के हाथों सोने के सिक्के भिजवा दिए।

उसी आम जनता का रुप लेकर सोने के सिक्कों के साथ मंत्रीजी अगली सुबह दुकानदार के पास पहुंचे। दुकानदार बहुत ही खुश हुए और उन्होंने सोचा की में राजा के बारे में कितनी गलत बातें सोच रहा था राजा तो बड़े ही दयालु है और यही पर गौतमबुद्ध में अपनी कहानी खत्म कर दी।

ये कहानी जब खत्म हुई तो गौतमबुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा कि अब आप बताइए कि “कर्म क्या होता है ?”, शिष्यों ने उत्तर देते हुए कहा की शब्द ही हमारे कर्म है, हम जो काम करते हैं वहीं हमारे कर्म है, जो भी भावनाएं हैं वहीं हमारे कर्म है। गौतमबुद्ध ने सभी शिष्यों के जवाब सुनने के बाद ये कहा “हमारे विचार ही हमारे कर्म है” अगर आपने अपने विचारों पर नियंत्रण करना शिख लिया तो आप एक महान इन्सान बन जाते हैं। जब आप अच्छा सोचते हैं तो आप के साथ भी अच्छा हीं होता है, और वो होता हीं रहेगा।

हम आशा करते हैं कि आप को हमारी यह स्टोरी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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