सात चक्र

7 चक्र

          सबसे पहले बात करते हैं योग की, जैसे कि सब जानते ही हैं कि योग भारत की देन हैं। प्राचीन काल में ऋषि- मुनियों द्वारा किए गए तप और ध्यान से मिली शक्तियों में से एक योग है, जिसे उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के स्वरूप में हम सब तक पहुंचाया है।

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          आज भारत के राजदूत श्री अशोक कुमार मुखर्जी द्वारा संयुक्त राष्ट्र में “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” पर एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया गया। जिस प्रस्ताव को 177 राष्ट्रों से समर्थन मिला। किसी भी UGNA(United Nations General Assembly) संकल्प के लिए सबसे अधिक सह-प्रायोजक हैं। अब हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
             अब बात करते हैं मानव शरीर में मौजूद 7 चक्रों की, भारत में 1500 और 500 ईसा पूर्व के बिच चक्र प्रणाली की उत्पत्ति वेदों में हुई थी। चक्रों, मंत्रों के साक्ष्य श्री जाबाल दर्शन उपनिषद, कुदामिनी उपनिषद, योग-शिखा उपनिषद, और शांडिल्य उपनिषद में पाया जाता हैं।
बिना अन्न और जल के 91 साल तक जिंदा रहें चूंदड़ी वाले माताजी।

आईए विस्तरुत में जानते हैं इन 7 चक्रों के बारे में।

1. मूलाधार चक्र (Root Chakra)


  • यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग के आसपास होता है।
  • इस चक्र को कुलकुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है। इसका एक और नाम भौम मंडल है।
  • यह भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं।
  • आध्यात्मिक रूप से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है।
  • इसका मंत्र है। – “लं”
  • व्यक्ति के अंदर अत्यधिक भोग की इच्छा और आध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से आती है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र(Sacral Chakra)


  • जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है।
  • इस चक्र का स्वरुप अर्ध- चंद्राकार है, यह जल तत्व का चक्र है।
  • इस चक्र से निम्न भावनाएं नियंत्रित होती है जैसे कि अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव, आग्रह, अविश्वास, सर्वनाश और क्रुरता ।
  • यह चक्रधर 6 पंखुड़ियों का होता है।
  • इसी चक्र से व्यक्ति के अंदर काम भाव और उन्नत भाव जाग्रत होता है।
  • इस चक्र का मंत्र है। - “वं”
  • इस चक्र को तामसिक चक्रधर माना जाता है। यह चक्र चौकोर तथा उगते हुए सूर्य के स्वर्ण वर्ण का है

3. मणिपुर चक्र(Solar Plexus Chakra)


  • यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है
  • इस चक्र का मूल आकार त्रिकोण है, और रंग  लाल है।
  • यह चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है, यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
  • यह अग्नि तत्व को नियंत्रित करता है और राजसिक गुण से संपन्न हे।
  • यह चक्र 10 पंखुड़ियों का है।
  • इस चक्र से लज्जा, दुष्टभाव, भय, तृष्णा, मोह, घृणा, इर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय जैसे भाव नियंत्रित होते हैं।
  • मन या शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है।
  • इस चक्र का मंत्र है। - “रं”

4. अनाहत चक्र(Heart Chakra)


  • हृदय के बीचों-बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित चक्र को अनाहत चक्र कहा जाता है।
  • आध्यात्मिक दृष्टि से यही साधक के सतोगुण की शुरुआत होती है। इसी चक्र
  • इस चक्र को सौरमंडल भी कहा जाता है। इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएं और अनुभूतियों की शुरुआत होती है।
  • इस चक्र को सौरमंडल भी कहा जाता है। इसका वर्ण हल्का हरा है।
  • इस चक्र में 6 कोण होते हैं। और इसका आकार षठकोण होता है।
  • इस चक्र में 12 पंखुड़ियां होती है।
  • इस चक्र से आशा, चिंता, ममता, चेष्ठा, विवेक, विकलता, दंभ, अहंकार, लोलता जैसे भाव नियंत्रित होते हैं।
  • व्यक्ति की भावनाएं और साधना की आंतरिक अनुभूतियां इस चक्र से संबंध रखतीं हैं।
  • मानसिक अवसाद की दशा में इस चक्र पर गुरु ध्यान और प्राणायाम करना अद्भुत परिणाम देता है।
  • इस चक्र का मंत्र है। -  “यं”

5. विशुद्ध चक्र(Throat Chakra)


  • यह चक्र कंठ के ठीक पीछे स्थित होता है।
  • यह चक्र और भी उच्चतम आध्यात्मिक अनुमतियां देता है। सभी प्रकारों की सिद्धियां इसी चक्र से प्राप्त होती है।
  • यह चक्र बहुरंगी है और इसका कोई खास स्वरुप नहीं है।
  • यह चक्र आकाश तत्व और आंठों सिद्धयो से संबंधित है।
  • इस चक्र में 16 पंखुड़ियां हैं।
  • कुंण्डली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है।
  • इस चक्र से भौतिक ज्ञान, ईश्वर में समर्पण, महान कार्य, कल्याण, और अमृत जैसी निम्न वृतियां नियंत्रित होती है।
  • इस चक्र के अनियंत्रित होने से थाइराइड जैसी समस्याएं और वाणी की विकृति होती है।
  • संगीत के सातों सुर इसी चक्रधर की देन है।
  • इस चक्र का मंत्र है। - “हं”

6. आज्ञा चक्र(Third Eye Chakra)


  • यह भौंहों के बीच स्थित चक्र को आज्ञा चक्र कहा जाता है।
  • यह 2 पंखुड़ियों वाला चक्र है, एक पंखुड़ी काले रंग की और दूसरी पंखुड़ी सफेद रंग की होती है।
  • सफेद पंखुडी ईश्वर की और जाने का प्रतीक है, और काली पंखुड़ियों का अर्थ सांसारिकता की और जाने का प्रतीक है।
  • इस चक्र के दो अक्षर और दो मंत्र है। - “ह” और “क्ष”
  • इस चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन से उपर होता है।
  • इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं।
  • इसी चक्र पर इ्डा, पिंगला, और सुषुन्मा आकार खुल जाती है और मन मुक्त अवस्था में पहुंच जाता है।

7.सहस्त्रार चक्र(Crown Of Head Chakra)

सहस्त्रार चक्र

  • मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर जो चक्र स्थित होता है, उसे सहस्त्रार चक्र कहा जाता है।
  • यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला है, और बिल्कुल उजले सफेद रंग का है।
  • इस चक्र का न तो कोई ध्यान मंत्र है और न तो कोई बीज मंत्र है, इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है।
  • कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुंचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है।
  • इसी स्थान को तंत्रराज में काशी कहा जाता है।
  • इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है।

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