सात चक्र
7 चक्र
सबसे पहले बात करते हैं योग की, जैसे कि सब जानते ही हैं कि योग भारत की देन हैं। प्राचीन काल में ऋषि- मुनियों द्वारा किए गए तप और ध्यान से मिली शक्तियों में से एक योग है, जिसे उन्होंने प्राचीन ग्रंथों के स्वरूप में हम सब तक पहुंचाया है।
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बिना अन्न और जल के 91 साल तक जिंदा रहें चूंदड़ी वाले माताजी।
आईए विस्तरुत में जानते हैं इन 7 चक्रों के बारे में।
1. मूलाधार चक्र (Root Chakra)
- यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग के आसपास होता है।
- इस चक्र को कुलकुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है। इसका एक और नाम भौम मंडल है।
- यह भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं।
- आध्यात्मिक रूप से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है।
- इसका मंत्र है। – “लं”
- व्यक्ति के अंदर अत्यधिक भोग की इच्छा और आध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से आती है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र(Sacral Chakra)
- जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है।
- इस चक्र का स्वरुप अर्ध- चंद्राकार है, यह जल तत्व का चक्र है।
- इस चक्र से निम्न भावनाएं नियंत्रित होती है जैसे कि अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव, आग्रह, अविश्वास, सर्वनाश और क्रुरता ।
- यह चक्रधर 6 पंखुड़ियों का होता है।
- इसी चक्र से व्यक्ति के अंदर काम भाव और उन्नत भाव जाग्रत होता है।
- इस चक्र का मंत्र है। - “वं”
- इस चक्र को तामसिक चक्रधर माना जाता है। यह चक्र चौकोर तथा उगते हुए सूर्य के स्वर्ण वर्ण का है
3. मणिपुर चक्र(Solar Plexus Chakra)
- यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है
- इस चक्र का मूल आकार त्रिकोण है, और रंग लाल है।
- यह चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है, यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
- यह अग्नि तत्व को नियंत्रित करता है और राजसिक गुण से संपन्न हे।
- यह चक्र 10 पंखुड़ियों का है।
- इस चक्र से लज्जा, दुष्टभाव, भय, तृष्णा, मोह, घृणा, इर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय जैसे भाव नियंत्रित होते हैं।
- मन या शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है।
- इस चक्र का मंत्र है। - “रं”
4. अनाहत चक्र(Heart Chakra)
- हृदय के बीचों-बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित चक्र को अनाहत चक्र कहा जाता है।
- आध्यात्मिक दृष्टि से यही साधक के सतोगुण की शुरुआत होती है। इसी चक्र
- इस चक्र को सौरमंडल भी कहा जाता है। इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएं और अनुभूतियों की शुरुआत होती है।
- इस चक्र को सौरमंडल भी कहा जाता है। इसका वर्ण हल्का हरा है।
- इस चक्र में 6 कोण होते हैं। और इसका आकार षठकोण होता है।
- इस चक्र में 12 पंखुड़ियां होती है।
- इस चक्र से आशा, चिंता, ममता, चेष्ठा, विवेक, विकलता, दंभ, अहंकार, लोलता जैसे भाव नियंत्रित होते हैं।
- व्यक्ति की भावनाएं और साधना की आंतरिक अनुभूतियां इस चक्र से संबंध रखतीं हैं।
- मानसिक अवसाद की दशा में इस चक्र पर गुरु ध्यान और प्राणायाम करना अद्भुत परिणाम देता है।
- इस चक्र का मंत्र है। - “यं”
5. विशुद्ध चक्र(Throat Chakra)
- यह चक्र कंठ के ठीक पीछे स्थित होता है।
- यह चक्र और भी उच्चतम आध्यात्मिक अनुमतियां देता है। सभी प्रकारों की सिद्धियां इसी चक्र से प्राप्त होती है।
- यह चक्र बहुरंगी है और इसका कोई खास स्वरुप नहीं है।
- यह चक्र आकाश तत्व और आंठों सिद्धयो से संबंधित है।
- इस चक्र में 16 पंखुड़ियां हैं।
- कुंण्डली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है।
- इस चक्र से भौतिक ज्ञान, ईश्वर में समर्पण, महान कार्य, कल्याण, और अमृत जैसी निम्न वृतियां नियंत्रित होती है।
- इस चक्र के अनियंत्रित होने से थाइराइड जैसी समस्याएं और वाणी की विकृति होती है।
- संगीत के सातों सुर इसी चक्रधर की देन है।
- इस चक्र का मंत्र है। - “हं”
6. आज्ञा चक्र(Third Eye Chakra)
- यह भौंहों के बीच स्थित चक्र को आज्ञा चक्र कहा जाता है।
- यह 2 पंखुड़ियों वाला चक्र है, एक पंखुड़ी काले रंग की और दूसरी पंखुड़ी सफेद रंग की होती है।
- सफेद पंखुडी ईश्वर की और जाने का प्रतीक है, और काली पंखुड़ियों का अर्थ सांसारिकता की और जाने का प्रतीक है।
- इस चक्र के दो अक्षर और दो मंत्र है। - “ह” और “क्ष”
- इस चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन से उपर होता है।
- इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं।
- इसी चक्र पर इ्डा, पिंगला, और सुषुन्मा आकार खुल जाती है और मन मुक्त अवस्था में पहुंच जाता है।
7.सहस्त्रार चक्र(Crown Of Head Chakra)
सहस्त्रार चक्र |
- मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर जो चक्र स्थित होता है, उसे सहस्त्रार चक्र कहा जाता है।
- यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला है, और बिल्कुल उजले सफेद रंग का है।
- इस चक्र का न तो कोई ध्यान मंत्र है और न तो कोई बीज मंत्र है, इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है।
- कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुंचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है।
- इसी स्थान को तंत्रराज में काशी कहा जाता है।
- इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है।
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